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आज महाराणा प्रताप की जयंती पर चलिये कुम्भलगढ़

महाराणा प्रताप (९ मई, १५४०- १९ जनवरी, १५९७) उदयपुर, मेवाड में शिशोदिया राजवंश के राजा थे. हिंदू कलेंडर के अनुसार उनका जन्म ज्येष्ठ शुक...

द्वादश ज्योतिर्लिंग -[भाग-6]-महाकालेश्वर

ऊँ महाकाल महाकाय, महाकाल जगत्पते।
महाकाल महायोगिन्महाकाल नमोऽस्तुते॥
- महाकाल स्त्रोत(महाकाय, जगत्पति, महायोगी महाकाल को नमन)
आज महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए चलते हैं.मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित ‘दक्षिणमुखी’ इस ज्योतिर्लिंग को स्वयंभू माना जाता है.

'उज्जैन' भारत के मध्य प्रदेश राज्य के मध्य में शिप्रा नदी के किनारे बसा एक अत्यन्त प्राचीन[ पाँच हजार सालसे भी अधिक पुराना] शहर है .
जो कभी राजा विक्रमादित्य [(जिनके नाम से विक्रम संवत चलाया गया]के राज्य की राजधानी थी.
यह एक प्रमुख धार्मिक शहर है जिसे हरिशचन्द्र की मोक्षभूमि, सप्तर्षियों की र्वाणस्थली, महर्षि सान्दीपनि कीतपोभूमि, श्रीकृष्ण की शिक्षास्थली, भर्तृहरि की योगस्थली, सम्वत प्रवर्त्तक सम्राट विक्रम की साम्राज्य धानी, महाकवि कालिदास की प्रिय नगरी, विश्वप्रसिद्ध दैवज्ञ वराह मिहिर की जन्मभूमि, जो अवन्तिका अमरावतीउज्जयिनी कुशस्थली, कनकश्रृंगा, विशाला, पद्मावती, उज्जयिनी आदि नामों से समय-समय पर प्रसिद्धिमिलतीरही

शिप्रा नदी [शिप्रा का अर्थ होता है धीमा वेग और करधनी] के तट पर हर बारह साल में एक बार सिंहस्थ महाकुंभका आयोजन किया जाता है.
महाकवि कालिदास ने अपने जीवन के पचास साल यहीं व्यतीत किए थे. उन्होंने अनेक कालजयी रचनाओं कासृजन यहीं किया था.

यहीं है विख्यात महाकालेश्वर मंदिर-

Mahakaleshwar Temple - Ujjain, Madhya Pradesh Mahakaleshwar Temple - Ujjain, Madhya Pradesh
शिवपुराण के अतिरिक्त स्कन्दपुराण के अवन्ती खण्ड में भगवान् महाकाल का भक्तिभाव से भव्य प्रभामण्डलप्रस्तुत हुआ है,जैन परम्परा में भी महाकाल का स्मरण विभिन्न सन्दर्भों में होता ही रहा है.बाणभट्ट के प्रमाण सेज्ञात होता है कि महात्मा बुद्ध के समकालीन उज्जैन के राजा प्रद्योत के समय महाकाल का मन्दिर विद्यमानथा.कालिदास के द्वारा मन्दिर का उल्लेख किया गया.
पंचतंत्र, कथासरित्सागर, बाणभट्ट से भी उस मन्दिर की पुष्टि होती है.
निर्माण किस ने और कब करवाया-
उज्जयिनी का महाकालेश्वर मन्दिर सर्वप्रथम कब निर्मित हुआ था, यह कहना कठिन है.प्रारंभिक मन्दिर काष्ट-स्तंभों पर आधारित था.
समय समय पर इस का जीर्णोद्धार होता रहा.
ग्यारहवी शती के राजा भोज आदि ने न केवल महाकाल का सादर स्मरण किया, अपितु भोजदेव ने तो महाकालमन्दिर को पंचदेवाय्रान से सम्पन्न भी कर दिया था.उनके वंशज नर वर्मा ने महाकाल की प्रशस्त प्रशस्ति वहींशिला पर उत्कीर्ण करवाई थी.उसके ही परमार राजवंश की कालावधि में 1235 ई में इल्तुतमिश ने महाकाल केदर्शन किये थे.परमार काल में निर्मित महाकालेश्वर का यह मन्दिर शताब्दियों तक निर्मित होता रहा था। परमारोंकी मन्दिर वास्तुकला भूमिज शैली की होती थी। इस काल के मन्दिर के जो भी अवशेष मन्दिर परिसर एवं निकटक्षेत्रों में उपलब्ध हैं, उनसे यह निष्कर्ष निकलता है कि यह मन्दिर निश्चित ही भूमिज शैली में निर्मित था.
उज्जैन में मराठा राज्य अठारहवीं सदी के चौथे दशक में स्थापित हो गया था.पेशवा बाजीराव प्रथम ने उज्जैन काप्रशासन अपने विश्वस्त सरदार राणोजी शिन्दे को सौंपा था. राणोजी के दीवान थे सुखटनकर रामचन्द्र बाबाशेणवी.उन्होंने उज्जैन में महाकाल मन्दिर का पुनर्निर्माण अठारहवीं सदी के चौथे-पाँचवें दशक में करवाया.
पिछले वर्ष [२००९] महाकालेश्वर मंदिर के ११८ शिखरों पर १६ किलो स्वर्ण का आरोहण किया गया.

मंदिर के निचले खण्ड में महाकालेश्वर ,बीच के खण्ड में ओंकारेश्वर तथा सर्वोच्च खण्ड में नागचन्द्रेश्वर के शिवलिंगप्रतिष्ठ हैं.
मन्दिर के परिसर में जो विशाल कुण्ड है, वही पावन कोटि तीर्थ है.
कुण्ड के पूर्व में जो विशाल बरामदा है, वहाँ से महाकालेश्वर के गर्भगृह में प्रवेश किया जाता है.
भस्मार्ती बहुत तड़के की जाती है.दक्षिण मुखी होने का कारण इस शिवलिंग का तांत्रिक महत्व है.इसलिए भी
यहाँ पहले महाकाल की भस्म आरती में चिता-भस्म का ही प्रयोग होता था, किन्तु महात्मा गांधी के आग्रह के पश्चात शास्त्रीय विधि से निर्मित उपल-भस्म से भस्मार्तीहोने लगी.

मंदिर की अधिकारिक साईट पर आप विस्तृत विवरण समय आदि की जानकारीले सकते हैं.
महाकाल मंदिर में शिवरात्रि और सावन सोमवार के दिन लाखों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं.
उज्जैन के कुम्भ पर्व की विशेषता यह है कि यहाँ कुम्भ एवं सिंहस्थ दोनों पर्व एक साथ आते हैं.
श्रावण महोत्सव में पं. जसराज से लेकर बिरजू महाराज जैसे ख्यातिमान कलाकार भाग लेते हैं.
रेफेरेंस-
Official site of this temple-http://www.mahakaleshwar.nic.in/hindi.html
विकिपीडिया और वेबदुनिया.कॉम
आईये देखें भस्मार्ती के कुछ अनुपम दृश्य –:
[ये सभी चित्र श्री राघवन जी से प्राप्त हुए हैं.उनका तहे दिल से आभार]
mahakalAbhishek Prior to Bhasma Aarathi mahakal-Alankar Prior to Bhasma Aarathi
mahakal-Bhasma Aarathi mahakal-
mahakal- after the completion of Bhasma Aarathi mahakal-Bhasma Aarathi - They cover the face (after alankar)
mahakal-Alankar after Bhasma Aarath mahakal-11

7 comments:

RADHIKA said...

थैंक्स अल्पना जी ,यहाँ बैठे बैठे आपने महाकालेश्वर की भस्मारती के दर्शन करवा दिए ,वो भी इतनी विस्तृत जानकारी के साथ ,आपका आभार

डॉ. मनोज मिश्र said...

हर-हर-महादेव.
आप बहुत पुण्य कमा रहीं है,इसी बहानें आपके सारे ज्योतिर्लिंगों के दर्शन हो रहे है.
यह सब के भाग्य में नहीं है.
आप पर महादेव की कृपा है,लिखती रहिये.......

संजय @ मो सम कौन... said...

हर-हर
बम-बम।
पहले शायद यह भस्म-आरती चिता की भस्म से की जाती थी?

Alpana Verma said...

जी हाँ आप सही कहते हैं , दक्षिण मुखी होने का कारण इस शिवलिंग का तांत्रिक महत्व है.इसलिए भी
यहाँ पहले महाकाल की भस्म आरती में चिता-भस्म का ही प्रयोग होता था, किन्तु महात्मा गांधी के आग्रह के पश्चात शास्त्रीय विधि से निर्मित उपल-भस्म से भस्मार्ती होने लगी.

Alpana Verma अल्पना वर्मा said...

Yah jaankari bhi lekh mein jod di gayee hai.

Unknown said...

Nice blog.
Such a great information on Ujjain city & ujjain darshan

Unknown said...

अभी भी चिता की ही राख से होती है।।।।।